Month: August 2020

हिन्दू धर्म में भभूति या भस्म, विभूति आदि को राख भी कहते हैं।

हिन्दू धर्म में भभूति या भस्म, विभूति आदि को राख भी कहते हैं। हिन्दू धर्म में इसका प्रचलन कब से है यह कहना कठिन है लेकिन कहा जाता है कि भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म रमाते थे। कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ के समय में भभूति का प्रचलन व्यापक स्तर पर प्रारंभ हुआ। शिरडी के साईं बाबा जिस भभूति को लोगों को देते थे उसे उदी भी कहा जाता है।

  1. भस्म तिलक : तिलक कई प्रकार के पदार्थों से बनाकर लगाया जाता है जैसे- मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, केसर, सिंदूर, कुंकुम, गोपी आदि। इसमें से भस्म तिलक का अधिकतर प्रयोग दक्षिण भारत में होता है जबकि नागा साधु, नाथपंथी साधु भी भभूति का तिलक लगाते हैं। नागा साधु मस्तक पर आड़ा भभूतलगा तीनधारी तिलक लगा कर धुनी रमाकर रहते हैं।
  2. भस्म के प्रकार : श्रौत, स्मार्त और लौकिक ऐसे तीन प्रकार की भस्म कही जाती है। श्रुति की विधि से यज्ञ किया हो वह भस्म श्रौत है, स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है तथा कण्डे को जलाकर भस्म तैयार की हो तो वह लौकिक भस्म कही जाती है। विरजा हवन की भस्म सर्वोत्कृष्ट मानी है।
  3. भस्म का आध्यात्मिक रहस्य : किसी भी पदार्थ का अंतिम रूप भस्म होता है। किसे भी जलाओ तो वह भस्म रूप में एक जैसा ही होगा। मिट्टी को भी जलाओ तो वह भस्म रूप में होगी। सभी का अंतिम स्वरूप भस्म ही है। भस्म इस बात का संकेत भी है कि सृष्टि नश्वर है।
  4. भस्मी स्नान : कहते हैं कि भस्म का स्नान करने के कई चमत्कारिक फायदे हैं। नवनाथ पंथ में कहते हैं कि उलटन्त बिभूत पलटन्त काया। अर्थात यह भभूत काया को शुद्ध तथा तेजस्वी बनाती है। चढ़ी भभूत घट हुआ निर्मल। अर्थात भभूत मन की मलिनता को हटाकर मन को निर्मल तथा पवित्र करती है।
  5. साधुओं की भस्म : नागा बाबा या तो किसी मुर्दे की राख को शुद्ध करके शरीर पर मलते हैं या उनके द्वारा किए गए हवन की राख को शरीर पर मलते हैं या‍‍ फिर यह राख धुनी की होती है। कई सन्यासी तथा नागा साधु पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं। कहते हैं कि यह भस्म उनके शरीर की कीटाणुओं से तो रक्षा करता ही है तथा सब रोम कूपों को ढंककर ठंड और गर्मी से भी राहत दिलाती है। रोम कूपों के ढंक जाने से शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल पाती इससे शीत का अहसास नहीं होता और गर्मी में शरीर की नमी बाहर नहीं होती। इससे गर्मी से रक्षा होती है। मच्छर, खटमल आदि जीव भी भस्म रमे शरीर से दूर रहते हैं। नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत मले, निर्वस्त्र रहते हैं।
  6. भस्म ही है वस्त्र : हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म (जलाना) करते हैं। इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्मी को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्मी नागा साधुओं का वस्त्र होता है।
  7. रोगनाशक भस्म : कई बार आपने सुना होगा कि किसी बाबा ने भभूत खिलाकर रोगी को ठीक कर दिया या फलां जगह मंदिर आश्रम आदि की भभूत खाकर लोग चमत्कारिक रूप से ठीक हो गए। दरअसल, आयुर्वेद में कई तरह की भस्म का उल्लेख किया गया है। जैसे जड़ी-बूटियों या स्वर्ण, रजत, शंख, हीरक, मुक्ताशुक्ति गोदंती, अभ्रक आदि कई तरह की भस्म होती है। उक्त भस्म को खाने से लाभ मिलता है। यज्ञ या हवन की सामग्री से बनी भभूत को भी कई तरह के रोग का नाशक माना गया है, लेकिन इस तरह की भभूत खाने से पहले यह जानना जरूरी है कि वह विश्वसनीय स्थान की है या नहीं।
  8. भभूत का साबर मंत्र : ॐ गुरु जी। भभूत माता भभूत पिता, भभूत पीर उस्ताद। भभूत में लिपटे शंकर शम्भू, काशी के कोतवाल। नवनाथों ने भभूत रमाई। प्रकटी उसमें काली माई। रिद्धि ल्याई सिद्धि ल्याई। काल कंटक को मार भगाई। अस्तक मस्तक लिंगा कार, मस्तक भभूत जय जय कार। भभूति में त्रिदेव विराजे। बजरंगी नाचे गोरख गाजे। खोले भाग्य के बन्द दरवाजे। सिद्धो आदेश धुना लगाया। उपजी भभूती मन हर्षाया। भभूती भस्म का जपो जाप। उतरे जन्म जन्म के पाप। आदेश गुरुजी नाथजी को आदेश भटनेर काली को आदेश।
  9. माथे पर विभूति लगाने के लाभ : माथे पर विभूति लगाने से आपके भीतर की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और आज्ञाचक्र सक्रिय होता है। इससे मानसिक रूप से शांति मिलती है और विचार शुद्ध होते हैं। गले में लगाने से विशुद्ध चक्र जागृत होता है। छाती के मध्य में लगाने से अनाहत चक्र जागृत होता है। उपरोक्त बिंदुओं पर भभूति लगाने से विवेक जागृत होता है।
  10. आम भस्म : माथे पर लगाई जाने वाली भस्म मूलत: चावल की भूसी से तैयार होती है जिसे दक्षिण भारत के लोग उपयोग करते हैं। दूसरी गोबर और कुछ अन्य मिश्रण से तैयार भस्म को उत्तर भारत के लोग उपयोग में लाते हैं। तीसरी गुग्गल, लकड़ी आदि की भस्म भी होती है। इसके अलावा श्‍मशान भूमि की भस्म का उपयोग शैवपंथी लोग करते हैं।

कोरोना महामारी से बचने के लिये हम सभी को सोशल डिस्टेंसींग का पालन कर रहे है ।

कोरोना महामारी से बचने के लिये हम सभी को सोशल डिस्टेंसींग का पालन कर रहे है । लेकिन इसका एक भयंकर विपरीत असर छोटे छोटे बच्चो पर हो रहा है । बच्चे घर से बाहर नही निकल पा रहे है तो उनका दूसरो बच्चो से मिलना , दौड , भाग , खेलना , कुदना नही हो रहा है तो इससे उनका वास्तविक विकास ( real growth ) नही हो रहा है । अब हर ऐक्टिविटी और क्लासेस ऑनलाइन होने के कारण उनके शरीर पर , आंखो पर , कानो पर बहुत ज्यादा दबाव बन रहा है । क्लासेस खत्म होने पर बच्चे रिफ्रेशमेन्ट के लिये टीवी देखते है तो फिर से उनके आंखो पर जोर पड़ता है । भविष्यम के संस्थापक आशीष पाटनी का कहना है की जो ज्ञानी चक्र , योग और आध्यात्म को समझते है वो जानते है की मोबाइल , कंप्यूटर, लैपटॉप की विकिरणे बच्चो के आज्ञा चक्र ( भ्रूमध्य ) को सुप्त कर देगी जिससे बच्चा बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का होने के बजाय धीरे धीरे शिथिल , अनाज्ञाकारी , बैचैन , मानसिक रूप से कमजोर, अस्थिर हो जायेगा और भ्रूमध्य चक्र सुप्त होने से सपनो की दुनिया मे ही रहने लगेगा और जीवन की वास्तविक समस्याओ से कभी नही लड़ पायेगा । फिर सोचिये बच्चे का क्या होगा ? उसके माता पिता का, परिवार का क्या होगा ? हम बच्चो को उज्ज्वल भविष्य दे रहे है या हम उनको नकली रोशनी का अन्धकार दे रहे है ?
पैरेंट्स जो भी करे , सोच समझ के करे । ये सच है की अब समय ऑनलाइन ऐक्टिविटी और क्लासेस का है । लेकिन जितना हो सके , उतना बचाना है हमे अपने बच्चो को मोबाइल , कंप्यूटर की नकारात्मक विकिरणो से । सबसे जरूरी है बच्चो मे योग , मंत्र , धर्मपाठ करने की आदत डालना ताकी बच्चो की अन्तर शक्ति , मानसिक शक्ति मज़बूत हो और बच्चो का आज्ञा चक्र ( भ्रूमध्य ) सुप्त ना हो ।
आशीष पाटनी
संस्थापक
भविष्यम्

भविष्यम की ओर से मै आशीष पाटनी अपना एक विचार, अनुभव और ज्ञान आपसे शेयर करना चाहता हू ।

मित्रो ,
भविष्यम की ओर से मै आशीष पाटनी अपना एक विचार, अनुभव और ज्ञान आपसे शेयर करना चाहता हू ।
भले अभी हमारे शरीर मे कोरोना वायरस नही घुसा हो लेकिन इसका डर हमारे मन और मस्तिष्क मे भयंकर रूप से घुस चुका है । खुद की सुरक्षा, परिवार और बच्चो की सुरक्षा की चिंता हमे अंदर से खाए जा रही है और हम खुश रहना भूलते जा रहे है , अंतर्मन से कमजोर होते जा रहे है । इसलिये कोरोना ही नही और भी बहुत सी बीमारी जो शायद हमे नही भी हो , वो भी हमे हो जायेगी । मित्रो हो सकता है कल ये बीमारी मुझे हो जाये,आपको हो जाये लेकिन उसके लिये आज से डरना और मरना क्यूं ? हर शरीर का अपना एक आंतरिक सुरक्षा तन्त्र होता है जो किसी भी वायरस से लड़ने मे सक्षम होता है और यह सुरक्षा तन्त्र मन की शक्ति से संचालित होता है । इसलिये भविष्यम का सभी से अनुरोध है सिर्फ शरीर पे ध्यान मत दो अपने मन की शक्तियो पर , अपनी इच्छा शक्ति पर भी ध्यान दो । जो होना होगा , होगा ,देखा जायेगा पहले खुद को इस अदृश्य डर और अज्ञात असुरक्षा के साये से बाहर निकाले
मन की शक्ति को मजबूत करने के लिये भविष्यम आपको कुछ अंतर्मन शक्ति वर्धक 9 टिप्स बता रहा है :
1 – दिन मे थोड़ी देर ध्यान meditation करे !
2 – धर्म और आध्यात्म मे कुछ समय दे !
3 – अपने धर्म , गुरू प्रदत्त मंत्रो का जाप करे !
4 – योगा के आसान से आसन करे !
5 – बच्चो की तरह कुछ खेल खेले !
6 – नाभि मे नारियल या बादाम का तेल लगा कर सोये !
7 – जब भी मन मे कुछ बुरे ख्याल आए तुरंत अपने शरीर मे चिमटी भरे , ये आपके खुद के लिये punishment है !
8 – नहाने के पश्चात तीन बार जोर से ताली बजाये !
9 – अपने बाल , गाल , कान , भौह , आंख , मुहफाड , उंगली , मस्तक को खीच कर ( strech ) सुप्त बिन्दुओ को जागृत करे ।
मित्रो , हम सभी मानव योनी मे पैदा हुए है जहा हम अपनी योग्यता और ज्ञान से घटनाओ की तासीर बदल सकते है । जब तुम अदृश्य वायरस से डर सकते है तो क्या अदृश्य भगवान पर भरोसा नही कर सकते हो ।
एक बात और सब तरफ भय का व्यापार चल रहा है जहा आप एक commodity बन गये हो । आप ही को बेचा और खरीदा जा रहा है । हक़ीक़त क्या है और क्या बताया जा रहा है । इस व्यापार मे मीडिया , हॉस्पिटल , लैब , डॉक्टर सबका इसमे बहुत बड़ा रोल है । कोरोना बीमारी से ज्यादा अब व्यापार बन गयी है । इस गंदे व्यापार की कठपुतली मत बनिये अपने मन को मज़बूत कीजिये । मेरे गुरुदेव विशुद्ध सागर जी महाराज की एक सीख मै हमेशा सबको कहता हू *
।। जो है … सो है ।।

तो आईये भविष्यम के साथ कहिये
लड़ना है..जीतना है..जीत के दिखाना है
मन को मज़बूत कर, इस डर को भगाना है

फिर से कहिये और कहते रहिये
लड़ना है..जीतना है..जीत के दिखाना है
मन को मज़बूत कर, इस डर को भगाना है