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।। मंत्रो की चमत्कारिक ऊर्जा शक्ति ।।

क्या वाकई में मंत्रो में चमत्कारिक शक्ति होती है क्या मंत्रो से हम अपने  अनिष्ट को बदल सकते है?

क्या मंत्र वाकई में इतनी उर्जावान होते है की प्राचीन काल में ऋषि मुनि श्राप से लोगो को जैसा चाहे  बना सकते थे क्या उनमे इतना तप था की वो कुछ भी कर सकते थे । बारिश करा सकते थे अग्नि प्रजवलित कर सकते थे । आखिर मंत्रो में इतनी शक्ति आती कहा से है ।इसको जानने ले लिए आवश्यक है इसकी गहरे को जानना ।मंत्रो को सैकड़ो और लाखो साल पहले ऋषियों के द्वारा ईश्वर उपासना के लिए तैयार किया गया । इन मंत्रो को इस प्रकार क्रम बद्ध किया गया जिससे की मंत्र जाप करने वाले के शारीर में एक उर्जा उत्पन्न  होने लगती है ।दूसरा की मंत्र संस्कृत में होते है और संस्कृत को योग का व्यवाहरिक रूप भी कहते है संस्कृत हमारी या इस दुनिया की पहली पुस्तक की भाषा होने का भी जिक्र कई जगह मिलता है । संस्कृत एक ऐसी भाषा है जो बोलने मात्र से कई बीमारियों से आपको दूर रखती है संस्कृत एक योग की भाषा है संस्कृत से  संस्कार आते है । संस्कृत से मस्तिष्क के कई बंद छिद्र खुल जाते है ।यानि सभी भाषाओ का उद्भव ही संस्कृत से हुआ है ।हम बात कर रहे थे की मंत्रो में शक्ति होती है की नहीं वो मंत्र जिन्हे हम बोलते है सभी संस्कृत से ही है और सभी का अपना महत्व है वो मंत्र एक प्रकार की योग क्रिया हमसे करवाते है जो की हमे मालूम ही नहीं पड़ता है की कब हमने योग कर लिया हम मंत्र जाप और पूजा पाठ  करने से पहले कहते है की हमे तो योग करने का समय ही नहीं मिलता है । लेकिन बहूत कम लोग ये जानते है की कुछ श्लोक और मंत्र करने मात्र से से कई योग क्रिया हम अनजाने में कर लेते है जिससे की हमारा शरीर तो स्वस्थ रहता है साथ में सकारात्मक उर्जा में शरीर के अन्दर उत्पन्न होने लगती है साथ में कई ऐसे शरीर के भाग जो निष्क्रिय से होते है मंत्रो का उच्चारण करने से सक्रिय हो जाते है । कभी कभार अपने कहते सुना होगा की गलत मंत्र बोलने से गलत हो सकता है यानि उस मंत्र का उच्चारण करने से । उनका कहना सही है लेकिन वो इसका सटीक कारण नहीं बता पाते कारण है की हम मंत्र बोलते वक्त जिन उर्जाओ को उत्त्पन्न कर रहे होते है वो सकारत्मक उर्जा गलत उच्चारण करने से  चली जाती है बस और न ही हमारी देवी रुष्ट होती है और न ही देवता ।क्या आप में से किसी से  उस ईश्वर  ने आ कर कहा की मैं आपकी पूजा से खुश नहीं हु शायद नहीं या मैं आपकी पूजा से खुश हु , नहीं लेकिन वो ढोंगी पंडित और बाबा हमे बताते है आपसे देवी या देवता रुष्ट हो गए  है अब आपको ये पूजा करवानी पड़ेगी और वो ही हमे ये भी बताते है की देवी खुश हो गई , जो गलत है । अगर हम नित्य पूजा पाठ ब्रह्म मुहूर्त यानि सुबह करते है सूर्य उदय से पहले तो हमारे  जीवन में कभी समस्या आएँगी ही नहीं ।

मंत्रो में ऊर्जा किस प्रकार उत्पन्न होती है इसको समझते है ।

जब भी हम कोई मंत्र बोलते है एक विशेष प्रकार की ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है जो उस प्रकार की उर्जा तरंगो  को वातावरण में ढूंढ़ कर हमारे अन्दर उर्जा उत्पन्न करती  है । जिसे उस पराशक्ति से समायोजित सा कर देता है जिससे ये श्रष्टि चल रही है ,ऐसा भी समझ सकते है । ये मंत्र एक अक्षर ॐ ओम  भी हो सकता है और पूरा शब्द समूह ” ॐ नमः शिवाय ” भी ।वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी ये सिद्ध  हो चूका है मंत्रो की शक्ति  प्रायः उनके नादो और उत्पन्न ध्वनि तरंगो में होती है मंत्रो का सम्बन्ध परामनोविज्ञान और ध्वनि तरंगो से है । हम सभी जानते है की मंत्रो की रचना ऋषि और  मुनियों ने की है जो पराशक्तियो से युक्त थे उनके पास वो विद्या थी की वो जो कह दे वो सत्य ही होता था । उन्होने सभी मंत्रो में अक्षरों का इस प्रकार चयन किया की उन मंत्रो से निकालने वाली उर्जा वातावरण में जाकर उससे सम्बंधित उर्जा को आपके अन्दर समाहित कर दे । इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है ,जब कोई किसी मन्त्र विशेष का जप करता है अर्थात बार-बार उच्चारण करता है तो उस मन्त्र के नादों से ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है जो एक उर्जा समूह का निर्माण करती है ,यह उर्जा समूह ब्रह्माण्ड में उपस्थित अपने ही प्रकार की उर्जा को आकर्षित करती है और उससे मिल कर एक विशिष्ट शक्ति में परिवर्तित हो जाती है और जप करने वाले व्यक्ति से जुड जाती है और उसके मानसिक तरंगों के दिशा निर्देशों  के अनुसार कार्य करने लगती है ,यही उस मन्त्र की दैवीय या पराशक्ति होती है |जब आप अपने जीवन में थक गए होते है समस्याओ से परेशान  हो गए  होते है और जब कुछ समझ में नहीं आता है तब मंत्र हमे उस प्रकार ही शांति प्रदान करते जब हम थक गए होते और हमे विश्राम करना होता है , जब हम प्यासे होते और कोई हमे पानी दे देता है और जब हमे धुप लगती है  और कोई हमे छाव  प्रदान करता है उस समय जो आन्नद का अनुभव  होता है ठीक उस प्रकार का अनुभव मन्त्रो को उच्चारित करने पर यानि बोलने पर होता इतना आनंद  आता है की हम खो जाते है इसके लिए सिर्फ मन का पवित्र होना और हमारे शारीर को उस ईश्वर  के ध्यान में लगाना मात्र होता है ।

मंत्रो से योग क्रिया कैसे होती है इसके लिए हमे संस्कृत को समझना आवश्यक  होगा …

संस्कृत भाषा एक भाषा मात्र न होकर , साधारण बोल चाल की भाषा न होकर मनुष्य के विकास  में भी सहायक होती है इस छुपे  हुए रहस्य को जानने वाले महान लोगो ने इसे देवताओ की भाषा कहा है अमृत वाणी कहा है ये संस्कारित भाषा है इसलिए ही इसे संस्कृत कहते है । संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई सामान्य मनुष्य नहीं थे अपितु वो महान ऋषि थे जिन्होने अक्षरों और शब्दों का ऐसा चयन करके हमे एक संस्कृत के रूप में औषधि दे दी की हम खुद नहीं जानते की हम औषधि पी रहे और हम निरोग भी होते जा रहे है । इन महान ऋषि , मुनि और योग शास्त्र के ज्ञाताओ ने योग क्रियाओ को संस्कृत के श्लोक और मंत्रो  में इस प्रकार समाहित किया है की जैसे हमारी माँ कडवी औषधि में मीठी वस्तु मिलाकर हमे बडे प्यार से वो कडवी औषधि खिला देती है और हम खा भी लेते  है और हमे जरा सा भी भान नहीं होता है की हमने निरोग होने  के लिए कडवी औषधि खा ली है । हम मीठी वस्तु का आनंद  लेते लेते कडवी औषधि अनायास ही खा लेते है ।और ठीक ऐसा ही संस्कृत या संस्कारित भाषा में भी है की हम मंत्र बोलते बोलते न जाने कितने बार योग क्रिया कर लेते है और हमे पता भी नहीं चलता  है ।संस्कृत भाषा में वे औषधीय तत्व क्या है ? यह जानने के लिए विश्व की तमाम भाषाओं से संस्कृत भाषा का तुलनात्मक अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है।संस्कृत में निम्नलिखित चार विशेषताएँ हैं जो उसे अन्य सभी भाषाओं से अलग और विशिष्ट बनाती हैं।अनुस्वार (अं ) और विसर्ग (अ:)संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभप्रद व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग। पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं —जैसे – राम:, बालक: ,हरि: ,भानु: ,आदि।औरनपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं—जैसे – जलं, वनं, फलं, पुष्पं ,आदि।अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अपने  आप  ही हो जाता है। जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं।उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम करते समय भ्रमर अर्थात भंवरे जैसी गुंजन होती है, इसी कारण इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते हैं। भ्रामरी प्राणायाम से जहां मन शांत होता है वहीं इसके नियमित अभ्यास से और भी बहुत से लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा।कपाल भाति प्राणायाम प्राणायाम की एक विधि है। कपाल का अर्थ संस्कृत में होता है माथा या ललाट, और भाति का अर्थ है तेज। इस प्राणायम का नियमित अभ्यास करने से मुख पर आंतरिक प्रभा (चमक) से उत्पन्न तेज रहता है। कपाल भाति बहुत ऊर्जावान उच्च उदर श्वास व्यायाम है। कपाल अर्थात मस्तिष्क और भाति यानी स्वच्छता। अर्थात ‘कपाल भाति’ वह प्राणायाम है जिससे मस्तिष्क स्वच्छ होता है और इस स्थिति में मस्तिष्क की कार्यप्रणाली सुचारु रूप से संचालित होती है। वैसे इस प्राणायाम के अन्य लाभ भी है।इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर की अनावश्यक चर्बी घटती है। हाजमा ठीक रहता है। भविष्य में कफ से संबंधित रोग व सांस के रोग नहीं होते। प्राय: दिन भर सक्रियता बनी रहती है। रात को नींद भी अच्छी आती है।भ्रामरी प्राणायाम से मन शांत होकर तनाव दूर होता है। इस ध्वनि के कारण मन इस ध्वनि के साथ बंध सा जाता है, जिससे मन की चंचलता समाप्त होकर एकाग्रता बढ़ने लगती है। यह मस्तिष्क के अन्य रोगों में भी लाभदायक है। इससे हृदय और फेफड़े सशक्त बनते हैं। उच्च-रक्तचाप सामान्य होता है। हकलाहट तथा तुतलाहट भी इसके नियमित अभ्यास से दूर होती है। योगाचार्यों अनुसार पर्किन्सन, लकवा, इत्यादि स्नायुओं से संबंधी सभी रोगों में भी लाभ पाया जा सकता है।अब अगर हम सिर्फ ‘ॐ  मात्र का उच्चारण करते है तो ये योग स्वतः ही हो जाते है अनुसंधानों से भी सिद्ध हो चूका है की गायत्री मंत्र में सबसे ज्यादा कम्पन्न होता है । संस्कृत भाषा में एक भी वाक्य ऐसा नहीं होता जिसमें अनुस्वार और विसर्ग न हों। अत: कहा जा सकता है कि संस्कृत बोलना ही चलते फिरते योग साधना करना होता है ।

संस्कृत भाषा में ऐसे ही न जाने कितने लाभ छुपे हुए  है जो सुबह सुबह  मंत्रोचारण करने मात्र से वो लाभ हमे मिल जाते है । संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। ये संस्कृत में जब दो शब्द पास में आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है। उस बदले हुए उच्चारण में जिह्वा आदि को कुछ विशेष प्रयत्न करना पड़ता है।ऐंसे सभी प्रयत्न एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के प्रयोग हैं।जैसे त्र्यम्‍बकं बलोनी से हमारी जीभ में काफी मुड़ेगी जो भी एक एक्यूप्रेशर है ।और पूरा मंत्र ” ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !! में कितने योग कर लेंगे की हमे मृत्यु का भय ही ख़त्म हो जाता है मतलब की सारी योग क्रियाए तो हो गई अब हम बीमार कहा से होंगे जब बीमार नहीं होंगे तो मृत्यु  का भय कहा से आयेगा ।इसलिए ही संस्कृत को देव भाषा संस्कारित भाषा और अमृत वाणी कहा गया है ।इसलिए मंत्रो में शक्ति निहित है बस हमे मन से उस ईश्वर उस परमशक्ति को ध्यान कर के मंत्रो का उच्चारण करना है । जिससे की  हमारे समस्त दुःख और दर्द दूर हो जायेंगे ।

भारतवर्ष के गुरुकुलों में क्या पढ़ाई होती थी, ये जान लेना आवश्यक है।

भारतवर्ष के गुरुकुलों में क्या पढ़ाई होती थी, ये जान लेना आवश्यक है। इस शिक्षा को लेकर अपने विचारों में परिवर्तन लाएं और भ्रांतियां दूर करें।

  1. अग्नि विद्या ( Metallergy )
  2. वायु विद्या ( Aviation )
  3. जल विद्या ( Navigation )
  4. अंतरिक्ष विद्या ( Space Science)
  5. पृथ्वी विद्या ( Environment & Ecology)
  6. सूर्य विद्या ( Solar System Studies )
  7. चन्द्र व लोक विद्या ( Lunar Studies )
  8. मेघ विद्या ( Weather Forecast )
  9. पदार्थ विद्युत विद्या ( Battery )
  10. सौर ऊर्जा विद्या ( Solar Energy )
  11. दिन रात्रि विद्या
  12. सृष्टि विद्या ( Space Research )
  13. खगोल विद्या ( Astronomy)
  14. भूगोल विद्या (Geography )
  15. काल विद्या ( Time )
  16. भूगर्भ विद्या (Geology and Mining )
  17. रत्न व धातु विद्या ( Gemology and Metals )
  18. आकर्षण विद्या ( Gravity )
  19. प्रकाश विद्या ( Optics)
  20. तार संचार विद्या ( Communication )
  21. विमान विद्या ( Aviation )
  22. जलयान विद्या ( Water , Hydraulics Vessels )
  23. अग्नेय अस्त्र विद्या ( Arms and Amunition )
  24. जीव जंतु विज्ञान विद्या ( Zoology Botany )
  25. यज्ञ विद्या ( Material Sc)
    वैज्ञानिक विद्याओं की अब बात करते है व्यावसायिक और तकनीकी विद्या की।
    वाणिज्य ( Commerce )
    भेषज (Pharmacy)
    शल्यकर्म व चिकित्सा (Diagnosis and Surgery)
    कृषि (Agriculture )
    पशुपालन ( Animal Husbandry )
    पक्षिपलन ( Bird Keeping )
    पशु प्रशिक्षण ( Animal Training )
    यान यन्त्रकार ( Mechanics)
    रथकार ( Vehicle Designing )
    रतन्कार ( Gems )
    सुवर्णकार ( Jewellery Designing )
    वस्त्रकार ( Textile)
    कुम्भकार ( Pottery)
    लोहकार (Metallergy)
    तक्षक (Toxicology)
    रंगसाज (Dying)
    रज्जुकर (Logistics)
    वास्तुकार ( Architect)
    पाकविद्या (Cooking)
    सारथ्य (Driving)
    नदी जल प्रबन्धक (Dater Management)
    सुचिकार (Data Entry)
    गोशाला प्रबन्धक (Animal Husbandry)
    उद्यान पाल (Horticulture)
    वन पाल (Forestry)
    नापित (Paramedical)
    अर्थशास्त्र (Economics)
    तर्कशास्त्र (Logic)
    न्यायशास्त्र (Law)
    नौका शास्त्र (Ship Building)
    रसायन शास्त्र (Chemical Science)
    ब्रह्मविद्या (Cosmology)
    न्याय वैद्यक शास्त्र (Medical Jurisprudence) – अथर्ववेद
    क्रव्याद (Postmortem) –अथर्ववेद
    आदि विद्याओ क़े तंत्रशिक्षा क़े वर्णन हमें वेद और उपनिषद में मिलते है।यह सब विद्या गुरुकुल में सिखाई जाती थी पर समय के साथ गुरुकुल लुप्त हुए तो यह विद्या भी लुप्त होती गयी।आज अंग्रेजी मैकाले पद्धति से हमारे देश के युवाओं का भविष्य नष्ट हो रहा तब ऐसे समय में गुरुकुल के पुनः उद्धार की आवश्यकता है।कुछ प्रसिद्ध भारतीय प्राचीन ऋषि मुनि वैज्ञानिक एवं संशोधक।
    पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
    अश्विनीकुमार:- मान्यता है कि ये देवताओं के चिकित्सक थे। कहा जाता है कि इन्होंने उड़ने वाले रथ एवं नौकाओं का आविष्कार किया था।
    धन्वंतरि:- इन्हें आयुर्वेद का प्रथम आचार्य व प्रवर्तक माना जाता है। इनके ग्रंथ का नाम धन्वंतरि संहिता है। शल्य चिकित्सा शास्त्र के आदि प्रवर्तक सुश्रुत और नागार्जुन इन्हीं की परंपरा में हुए थे।
    महर्षि भारद्वाज:-आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमान शास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
    महर्षि विश्वामित्र: -ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई।इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी। ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के द्रष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
    महर्षि गर्ग मुनि:- गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।ये गर्ग मुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया,वह पूरी तरह सही साबित हुआ।कौरव- पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था।तिथि – नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।
    महर्षि पतंजलि:- आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
    महर्षि कपिल मुनि:- सांख्य दर्शन के प्रवर्तक व सूत्रों के रचयिता थे महर्षि कपिल, जिन्होंने चेतना की शक्ति एवं त्रिगुणात्मक प्रकृति के विषय में महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे।
    महर्षि कणाद:- ये वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक हैं। ये अणु विज्ञान के प्रणेता रहे हैं। इनके समय अणु विज्ञान दर्शन का विषय था, जो बाद में भौतिक विज्ञान में आया।
    महर्षि सुश्रुत: – ये शल्य चिकित्सा पद्धति के प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे। इन्होंने सुश्रुत संहिता नामक ग्रंथ में शल्य क्रिया का वर्णन किया है। सुश्रुत ने ही त्वचारोपण (प्लास्टिक सर्जरी) और मोतियाबिंद की शल्य क्रिया का विकास किया था। पार्क डेविस ने सुश्रुत को विश्व का प्रथम शल्यचिकित्सक कहा है।
    जीवक:- सम्राट बिंबसार के एकमात्र वैद्य। उज्जयिनी सम्राट चंडप्रद्योत की शल्य चिकित्सा इन्होंने ही की थी। कुछ लोग मानते हैं कि गौतम बुद्ध की चिकित्सा भी इन्होंने की थी।
    महर्षि बौधायन:- बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुलयशास्त्र के रचयिता थे। आज दुनिया भर में यूनानी उकेलेडियन ज्योमेट्री पढाई जाती है मगर इस ज्योमेट्री से पहले भारत के कई गणितज्ञ ज्योमेट्री के नियमों की खोज कर चुके थे। उन गणितज्ञ में बौधायन का नाम सबसे ऊपर है, उस समय ज्योमेट्री या अलजेब्रा को भारत में शुल्वशास्त्र कहा जाता था।
    महर्षि भास्कराचार्य:- आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
    महर्षि चरक:- चरक औषधि के प्राचीन भारतीय विज्ञान के पिता के रूप में माने जातें हैं। वे कनिष्क के दरबार में राज वैद्य (शाही चिकित्सक) थे, उनकी चरक संहिता चिकित्सा पर एक उल्लेखनीय पुस्तक है। इसमें रोगों की एक बड़ी संख्या का विवरण दिया गया है और उनके कारणों की पहचान करने के तरीकों और उनके उपचार की पद्धति भी प्रदान करती है। वे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा के बारे में बताते थे और इसलिए चिकित्सा विज्ञान चरक संहिता में, बीमारी का इलाज करने के बजाय रोग के कारण को हटाने के लिएअधिक ध्यान रखा गया है।चरकअनुवांशिकी(अपंगता) के मूल सिद्धांतों को भी जानते थे।
    ब्रह्मगुप्त:- 7 वीं शताब्दी में, ब्रह्मगुप्त ने गणित को दूसरों से परे ऊंचाइयों तक ले गये। गुणन के अपने तरीकों में, उन्होंने लगभग उसी तरह स्थान मूल्य का उपयोग किया था, जैसा कि आज भी प्रयोग किया जाता है। उन्होंने गणित में शून्य पर नकारात्मक संख्याएं और संचालन शुरू किया। उन्होंने ब्रह्म मुक्त सिध्दांतिका को लिखा, जिसके माध्यम से अरब देश के लोगों ने हमारे गणितीय प्रणाली को जाना।
    महर्षिअग्निवेश:- ये शरीर विज्ञान के रचयिता थे।
    महर्षि शालिहोत्र: – इन्होंने पशु चिकित्सा पर आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की।
    व्याडि:- ये रसायन शास्त्री थे। इन्होंने भैषज (औषधि) रसायन का प्रणयन किया। अलबरूनी के अनुसार, व्याडि ने एक ऐसा लेप बनाया था, जिसे शरीर पर मलकर वायु में उड़ा जा सकता था।
    आर्यभट्ट: – इनका जन्म 476 ई. में कुसुमपुर ( पाटलिपुत्र ) पटना में हुआ था। ये महान खगोलशास्त्र और व गणितज्ञ थे। इन्होंने ही सबसे पहले सूर्य और चन्द्र ग्रहण की व्याख्या की थी और सबसे पहले इन्होंने ही बताया था की धरती अपनी ही धुरी पर धूमती है और इसे सिद्ध भी किया था । और यही नहीं इन्होंने ही सबसे पहले पाई के मान को निरुपित किया।
    महर्षि वराहमिहिर: – इनका जन्म 499 ई.में कपित्थ (उज्जेन) में हुआ था।ये महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्र थे।इन्होंने पंचसिद्धान्तका नाम की किताब लिखी थी जिसमें इन्होंने बताया था कि ,अयांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर होता होता है और इन्होने शून्य और ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया |
    हलायुध:- इनका जन्म 1000 ई.में काशी में हुआ था। ये ज्योतिषविद और गणितज्ञ व महान वैज्ञानिक भी थे ।इन्होंने अभिधानरत्नमाला या मृतसंजीवनी नमक ग्रन्थ की रचना की। इसमें इन्होंने या पास्कल त्रिभुज ( मेरु प्रस्तार ) का स्पष्ट वर्णन किया है।पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
    5000 साल पहले ब्राह्मणों ने हमारा बहुत शोषण किया, ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने से रोका।यह बात बताने वाले महान इतिहासकार यह नहीं बताते कि इनमें से अधिकतर जन्म से ब्राह्मण नहीं थे ।साथ ही साथ यह भी नहीं बताते कि 500 साल पहले मुगलों ने हमारे साथ क्या किया 200 साल पहले अंग्रेजो ने हमारे साथ क्या किया?
    हमारे देश में शिक्षा नहीं थी लेकिन 1897 में शिवकर बापूजी तलपडे़ ने हवाई जहाज बना कर उड़ाया था मुंबई में जिसको देखने के लिए उस समय के हाई कोर्ट के जज महा गोविंद रानाडे और मुंबई के एक राजा महाराज गायकवाड के साथ- साथ हजारों लोग मौजूद थे।उसके बाद एक डेली ब्रदर नाम की इंग्लैंड की कंपनी ने शिवकर बापूजी तलपडे़ के साथ समझौता किया और बाद में बापू जी की मृत्यु हो गई यह मृत्यु भी एक षड्यंत्र है, हत्या कर दी गई और फिर बाद में 1903 में राइट बंधु ने जहाज बनाया।
    आप लोगों को बताते चलें कि आज से हजारों साल पहले की किताब है महर्षि भारद्वाज की विमान शास्त्र जिसमें 500 जहाज 500 प्रकार से बनाने की विधि है उसी को पढ़ कर शिवकर बापूजी तलपडे ने जहाज बनाई थी। लेकिन यह तथाकथित नास्तिक लंपट ईसाइयों के दलाल जो हैं तो हम सबके ही बीच से लेकिन हमें बताते हैं कि भारत में तो कोई शिक्षा ही नहीं थी कोई रोजगार नहीं था।
    अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन 14 दिसंबर 1799 को मरे थे सर्दी और बुखार की वजह से उनके पास बुखार की दवा नहीं थी।पर भारत में प्लास्टिक सर्जरी होती थी और अंग्रेज प्लास्टिक सर्जरी सीख रहे थे हमारे गुरुकुल में अब कुछ वामपंथी लंपट बोलेंगे यह सरासर झूठ है।तो वामपंथी लंपट गिरोह कह सकते है कि ऑस्ट्रेलियन कॉलेज ऑफ सर्जन ,मेलबर्न में ऋषि सुश्रुत की प्रतिमा “फादर ऑफ सर्जरी” टाइटल के साथ स्थापित है क्यों?
    2000 साल पहले का मंदिर मिलते हैं जिसको आज के वैज्ञानिक और इंजीनियर देख कर हैरान में हो जाते हैं कि मंदिर बना कैसे होगा अब हमें इन वामपंथी लंपट लोगो से पूछना चाहिए कि मंदिर बनाया किसने ?
    ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने नहीं दिया यह बात बताने वाले महान इतिहासकार हमें यह नहीं बताते कि सन 1835 तक भारत में 700000 गुरुकुल थे इसका पूरा डॉक्यूमेंट Indian house में मिलेगा तो उसमें पढ़ता कौन था और वह खत्म कैसे हुआ?
    भारत गरीब देश था चाहे है तो फिर दुनिया के तमाम आक्रमणकारी भारत ही क्यों आए हमें अमीर बनाने के लिए?
    भारत में कोई रोजगार नहीं था।
    भारत में पिछड़े दलितों को गुलाम बनाकर रखा जाता था लेकिन वामपंथी लंपट आपसे यह नहीं बताएंगे कि 1750 में पूरे दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा 24 प्तिशतर था
    और सन उन्नीस सौ में एक प्तिशतर परआ गया आखिर कारण क्या था?
    अगर हमारे देश में उतना ही छुआछूत थे हमारे देश में रोजगार नहीं था तो फिर पूरे दुनिया के व्यापार में हमारा 24 प्रताशत का व्यापार कैसे था?
    यह वामपंथी लंपट यह नहीं बताएंगे कि कैसे अंग्रेजों के नीतियों के कारण भारत में लोग एक ही साथ 3000000 लोग भूख से मर गए कुछ दिन के अंतराल में क्यों?
    एक बेहद खास बात वामपंथी लंपट या अंग्रेज दलाल कहते हैं इतना ही भारत समृद्ध था, इतना ही सनातन संस्कृति समृद्ध थी तो सभी अविष्कार अंग्रेजों ने ही क्यों किए हैं भारत के लोगों ने कोई भी अविष्कार क्यों नहीं किया?
    उन वामपंथी लंपट लोगों को बताते चलें कि किया तो सब आविष्कार भारत में ही लेकिन उन लोगों ने चुरा करके अपने नाम से पेटेंट कराया। नहीं तो एक बात कि भारत आने से पहले अंग्रेजों ने कोई एक अविष्कार किया हो तो उसका नाम बताओ एवं थोड़ा अपना दिमाग लगाओ कि भारत आने के बाद ही यह लोग आविष्कार कैसे करने लगे, उससे पहले क्यों नहीं करते थे ?

हिन्दू धर्म में भभूति या भस्म, विभूति आदि को राख भी कहते हैं।

हिन्दू धर्म में भभूति या भस्म, विभूति आदि को राख भी कहते हैं। हिन्दू धर्म में इसका प्रचलन कब से है यह कहना कठिन है लेकिन कहा जाता है कि भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म रमाते थे। कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ के समय में भभूति का प्रचलन व्यापक स्तर पर प्रारंभ हुआ। शिरडी के साईं बाबा जिस भभूति को लोगों को देते थे उसे उदी भी कहा जाता है।

  1. भस्म तिलक : तिलक कई प्रकार के पदार्थों से बनाकर लगाया जाता है जैसे- मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, केसर, सिंदूर, कुंकुम, गोपी आदि। इसमें से भस्म तिलक का अधिकतर प्रयोग दक्षिण भारत में होता है जबकि नागा साधु, नाथपंथी साधु भी भभूति का तिलक लगाते हैं। नागा साधु मस्तक पर आड़ा भभूतलगा तीनधारी तिलक लगा कर धुनी रमाकर रहते हैं।
  2. भस्म के प्रकार : श्रौत, स्मार्त और लौकिक ऐसे तीन प्रकार की भस्म कही जाती है। श्रुति की विधि से यज्ञ किया हो वह भस्म श्रौत है, स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है तथा कण्डे को जलाकर भस्म तैयार की हो तो वह लौकिक भस्म कही जाती है। विरजा हवन की भस्म सर्वोत्कृष्ट मानी है।
  3. भस्म का आध्यात्मिक रहस्य : किसी भी पदार्थ का अंतिम रूप भस्म होता है। किसे भी जलाओ तो वह भस्म रूप में एक जैसा ही होगा। मिट्टी को भी जलाओ तो वह भस्म रूप में होगी। सभी का अंतिम स्वरूप भस्म ही है। भस्म इस बात का संकेत भी है कि सृष्टि नश्वर है।
  4. भस्मी स्नान : कहते हैं कि भस्म का स्नान करने के कई चमत्कारिक फायदे हैं। नवनाथ पंथ में कहते हैं कि उलटन्त बिभूत पलटन्त काया। अर्थात यह भभूत काया को शुद्ध तथा तेजस्वी बनाती है। चढ़ी भभूत घट हुआ निर्मल। अर्थात भभूत मन की मलिनता को हटाकर मन को निर्मल तथा पवित्र करती है।
  5. साधुओं की भस्म : नागा बाबा या तो किसी मुर्दे की राख को शुद्ध करके शरीर पर मलते हैं या उनके द्वारा किए गए हवन की राख को शरीर पर मलते हैं या‍‍ फिर यह राख धुनी की होती है। कई सन्यासी तथा नागा साधु पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं। कहते हैं कि यह भस्म उनके शरीर की कीटाणुओं से तो रक्षा करता ही है तथा सब रोम कूपों को ढंककर ठंड और गर्मी से भी राहत दिलाती है। रोम कूपों के ढंक जाने से शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल पाती इससे शीत का अहसास नहीं होता और गर्मी में शरीर की नमी बाहर नहीं होती। इससे गर्मी से रक्षा होती है। मच्छर, खटमल आदि जीव भी भस्म रमे शरीर से दूर रहते हैं। नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत मले, निर्वस्त्र रहते हैं।
  6. भस्म ही है वस्त्र : हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म (जलाना) करते हैं। इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्मी को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्मी नागा साधुओं का वस्त्र होता है।
  7. रोगनाशक भस्म : कई बार आपने सुना होगा कि किसी बाबा ने भभूत खिलाकर रोगी को ठीक कर दिया या फलां जगह मंदिर आश्रम आदि की भभूत खाकर लोग चमत्कारिक रूप से ठीक हो गए। दरअसल, आयुर्वेद में कई तरह की भस्म का उल्लेख किया गया है। जैसे जड़ी-बूटियों या स्वर्ण, रजत, शंख, हीरक, मुक्ताशुक्ति गोदंती, अभ्रक आदि कई तरह की भस्म होती है। उक्त भस्म को खाने से लाभ मिलता है। यज्ञ या हवन की सामग्री से बनी भभूत को भी कई तरह के रोग का नाशक माना गया है, लेकिन इस तरह की भभूत खाने से पहले यह जानना जरूरी है कि वह विश्वसनीय स्थान की है या नहीं।
  8. भभूत का साबर मंत्र : ॐ गुरु जी। भभूत माता भभूत पिता, भभूत पीर उस्ताद। भभूत में लिपटे शंकर शम्भू, काशी के कोतवाल। नवनाथों ने भभूत रमाई। प्रकटी उसमें काली माई। रिद्धि ल्याई सिद्धि ल्याई। काल कंटक को मार भगाई। अस्तक मस्तक लिंगा कार, मस्तक भभूत जय जय कार। भभूति में त्रिदेव विराजे। बजरंगी नाचे गोरख गाजे। खोले भाग्य के बन्द दरवाजे। सिद्धो आदेश धुना लगाया। उपजी भभूती मन हर्षाया। भभूती भस्म का जपो जाप। उतरे जन्म जन्म के पाप। आदेश गुरुजी नाथजी को आदेश भटनेर काली को आदेश।
  9. माथे पर विभूति लगाने के लाभ : माथे पर विभूति लगाने से आपके भीतर की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और आज्ञाचक्र सक्रिय होता है। इससे मानसिक रूप से शांति मिलती है और विचार शुद्ध होते हैं। गले में लगाने से विशुद्ध चक्र जागृत होता है। छाती के मध्य में लगाने से अनाहत चक्र जागृत होता है। उपरोक्त बिंदुओं पर भभूति लगाने से विवेक जागृत होता है।
  10. आम भस्म : माथे पर लगाई जाने वाली भस्म मूलत: चावल की भूसी से तैयार होती है जिसे दक्षिण भारत के लोग उपयोग करते हैं। दूसरी गोबर और कुछ अन्य मिश्रण से तैयार भस्म को उत्तर भारत के लोग उपयोग में लाते हैं। तीसरी गुग्गल, लकड़ी आदि की भस्म भी होती है। इसके अलावा श्‍मशान भूमि की भस्म का उपयोग शैवपंथी लोग करते हैं।

कोरोना महामारी से बचने के लिये हम सभी को सोशल डिस्टेंसींग का पालन कर रहे है ।

कोरोना महामारी से बचने के लिये हम सभी को सोशल डिस्टेंसींग का पालन कर रहे है । लेकिन इसका एक भयंकर विपरीत असर छोटे छोटे बच्चो पर हो रहा है । बच्चे घर से बाहर नही निकल पा रहे है तो उनका दूसरो बच्चो से मिलना , दौड , भाग , खेलना , कुदना नही हो रहा है तो इससे उनका वास्तविक विकास ( real growth ) नही हो रहा है । अब हर ऐक्टिविटी और क्लासेस ऑनलाइन होने के कारण उनके शरीर पर , आंखो पर , कानो पर बहुत ज्यादा दबाव बन रहा है । क्लासेस खत्म होने पर बच्चे रिफ्रेशमेन्ट के लिये टीवी देखते है तो फिर से उनके आंखो पर जोर पड़ता है । भविष्यम के संस्थापक आशीष पाटनी का कहना है की जो ज्ञानी चक्र , योग और आध्यात्म को समझते है वो जानते है की मोबाइल , कंप्यूटर, लैपटॉप की विकिरणे बच्चो के आज्ञा चक्र ( भ्रूमध्य ) को सुप्त कर देगी जिससे बच्चा बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का होने के बजाय धीरे धीरे शिथिल , अनाज्ञाकारी , बैचैन , मानसिक रूप से कमजोर, अस्थिर हो जायेगा और भ्रूमध्य चक्र सुप्त होने से सपनो की दुनिया मे ही रहने लगेगा और जीवन की वास्तविक समस्याओ से कभी नही लड़ पायेगा । फिर सोचिये बच्चे का क्या होगा ? उसके माता पिता का, परिवार का क्या होगा ? हम बच्चो को उज्ज्वल भविष्य दे रहे है या हम उनको नकली रोशनी का अन्धकार दे रहे है ?
पैरेंट्स जो भी करे , सोच समझ के करे । ये सच है की अब समय ऑनलाइन ऐक्टिविटी और क्लासेस का है । लेकिन जितना हो सके , उतना बचाना है हमे अपने बच्चो को मोबाइल , कंप्यूटर की नकारात्मक विकिरणो से । सबसे जरूरी है बच्चो मे योग , मंत्र , धर्मपाठ करने की आदत डालना ताकी बच्चो की अन्तर शक्ति , मानसिक शक्ति मज़बूत हो और बच्चो का आज्ञा चक्र ( भ्रूमध्य ) सुप्त ना हो ।
आशीष पाटनी
संस्थापक
भविष्यम्

भविष्यम की ओर से मै आशीष पाटनी अपना एक विचार, अनुभव और ज्ञान आपसे शेयर करना चाहता हू ।

मित्रो ,
भविष्यम की ओर से मै आशीष पाटनी अपना एक विचार, अनुभव और ज्ञान आपसे शेयर करना चाहता हू ।
भले अभी हमारे शरीर मे कोरोना वायरस नही घुसा हो लेकिन इसका डर हमारे मन और मस्तिष्क मे भयंकर रूप से घुस चुका है । खुद की सुरक्षा, परिवार और बच्चो की सुरक्षा की चिंता हमे अंदर से खाए जा रही है और हम खुश रहना भूलते जा रहे है , अंतर्मन से कमजोर होते जा रहे है । इसलिये कोरोना ही नही और भी बहुत सी बीमारी जो शायद हमे नही भी हो , वो भी हमे हो जायेगी । मित्रो हो सकता है कल ये बीमारी मुझे हो जाये,आपको हो जाये लेकिन उसके लिये आज से डरना और मरना क्यूं ? हर शरीर का अपना एक आंतरिक सुरक्षा तन्त्र होता है जो किसी भी वायरस से लड़ने मे सक्षम होता है और यह सुरक्षा तन्त्र मन की शक्ति से संचालित होता है । इसलिये भविष्यम का सभी से अनुरोध है सिर्फ शरीर पे ध्यान मत दो अपने मन की शक्तियो पर , अपनी इच्छा शक्ति पर भी ध्यान दो । जो होना होगा , होगा ,देखा जायेगा पहले खुद को इस अदृश्य डर और अज्ञात असुरक्षा के साये से बाहर निकाले
मन की शक्ति को मजबूत करने के लिये भविष्यम आपको कुछ अंतर्मन शक्ति वर्धक 9 टिप्स बता रहा है :
1 – दिन मे थोड़ी देर ध्यान meditation करे !
2 – धर्म और आध्यात्म मे कुछ समय दे !
3 – अपने धर्म , गुरू प्रदत्त मंत्रो का जाप करे !
4 – योगा के आसान से आसन करे !
5 – बच्चो की तरह कुछ खेल खेले !
6 – नाभि मे नारियल या बादाम का तेल लगा कर सोये !
7 – जब भी मन मे कुछ बुरे ख्याल आए तुरंत अपने शरीर मे चिमटी भरे , ये आपके खुद के लिये punishment है !
8 – नहाने के पश्चात तीन बार जोर से ताली बजाये !
9 – अपने बाल , गाल , कान , भौह , आंख , मुहफाड , उंगली , मस्तक को खीच कर ( strech ) सुप्त बिन्दुओ को जागृत करे ।
मित्रो , हम सभी मानव योनी मे पैदा हुए है जहा हम अपनी योग्यता और ज्ञान से घटनाओ की तासीर बदल सकते है । जब तुम अदृश्य वायरस से डर सकते है तो क्या अदृश्य भगवान पर भरोसा नही कर सकते हो ।
एक बात और सब तरफ भय का व्यापार चल रहा है जहा आप एक commodity बन गये हो । आप ही को बेचा और खरीदा जा रहा है । हक़ीक़त क्या है और क्या बताया जा रहा है । इस व्यापार मे मीडिया , हॉस्पिटल , लैब , डॉक्टर सबका इसमे बहुत बड़ा रोल है । कोरोना बीमारी से ज्यादा अब व्यापार बन गयी है । इस गंदे व्यापार की कठपुतली मत बनिये अपने मन को मज़बूत कीजिये । मेरे गुरुदेव विशुद्ध सागर जी महाराज की एक सीख मै हमेशा सबको कहता हू *
।। जो है … सो है ।।

तो आईये भविष्यम के साथ कहिये
लड़ना है..जीतना है..जीत के दिखाना है
मन को मज़बूत कर, इस डर को भगाना है

फिर से कहिये और कहते रहिये
लड़ना है..जीतना है..जीत के दिखाना है
मन को मज़बूत कर, इस डर को भगाना है